यह आदर प्रेम का अंत ना हो
यह भाव अति अत्यंत ना हो
जो श्रद्धा अत्याचार बने
जो दूर करे दीवार बने
तुम वो सम्मान नहीं करना
मुझको भगवान नहीं करना
शिक्षक शोषण का चालक हूँ
नायक हूँ या खलनायक हूँ
क्या मैं ही चरित्र का रक्षक हूँ?
क्या मैं केवल ऎक शिक्षक हूँ ?
मैं भी तुम जैसा प्राणी हूँ
सत्ता से घमंडित होता हूँ
षड्यंत्र में मिश्रित होता हूँ
झूटों से प्रेरित होता हूँ
हर पाप से पीङिट होता हूँ
हाँ मैं प्रदूषित होता हूँ
यह पावॅ फिसलते देखो तो
हाँ रूप बदलते देखो तो
ख़ुद को हैरान नहीं करना
मुझ को भगवान नहीं करना
आदर्श तुम्हारा विषय सही
मैं शोध विधि का दृश्य सही
जब ज्ञान मेरा भी सीमित हो
क्यूँ चूक मुझी पर वर्जित हो
घर मेरा जीवन मैं ले कर
स्थल निर्माण नहीं करना
मुझ को भगवान नहीं करना
हाँ मानवता का मंथन हूँ
पर वस्तु नहीं एक जीवन हूँ
है श्रोत बढ़ी, मैं बस धारा
है आग बढ़ी मैं अंगारा
कोई तर्क बिना संदर्भ नहीं
शिक्षक शिक्षा का विकल्प नहीं
ज्ञानी को ज्ञान नहीं करना
मुझको भगवान नहीं करना
तुम एकलव्य हो अर्जुन हो
अपने आवेग का अर्पण हो
यह विद्या मेरा ऋण नहीं
यह संस्था मेरी श्रण नहीं
जीवन का समर्पण माँगूँ तो
चिंतन का यह दर्पण माँगूँ तो
तुम ऎसा दान नहीं करना
मुझको भगवान नहीं करना